रविवार, 19 जून 2011

हमारा झंडा

शेर है चलते हैं दर्राते हुए
बादलों की तरह मंडलाते हुए
जिन्दगी की रागनी गाते हुए
लाल झंडा है हमारे हाथ में
हां ये सच है भूक से हैरान हैं
पर ये मत समझो कि हम बेजान हैं
इस बुरी हालत में भी तूफान हैं
लाल झंडा है हमारे हाथ में
हम वो हैं जो बेरूखी करते नहीं
हम वो हैं जो मौत से डरते नहीं
हम वो हैं जो मरके भी मरते नहीं
लाल झंडा है हमारे हाथ में
चैन से महलों में हम रहते नहीं
ऐश की गंगा में हम बहते नहीं
भेद दुश्मन से कभी कहते नहीं
लाल झंडा है हमारे हाथ में
जानते है एक लश्कर आएगा
तोप दिखलाकर हमें धमकाएगा
पर ये झंडा यूं ही लहरायेगा
लाल झंडा है हमारे हाथ में
कब भला धमकी से घबराते हैं हम
दिल में जो होता है, कह जाते हैं हम
आसमां हिलता है जब गाते हैं हम
लाल झंडा है हमारे हाथ में
लाख लश्कर आऐं कब हिलते हैं हम
आंधियों में जग की खुलते हैं हम
मौत से हंसकर गले मिलते हैं हम
लाल झंडा है हमारे हाथ में
- मजाज

1 टिप्पणी:

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

मजाज साहब का यह झंडा गायन जोशीला एवं प्रेरणास्पद है.